प्रवाह का पचीसवां अंक आपके साथ साझा करते हुए मन में बहुत उत्साह है लेकिन यह उत्साह कई गुना अधिक होता अगर विगत कुछ महीनों में आया कोविड महामारी संकट नहीं होता। विचार था कि इस पचीसवें संस्करण पर कोई भव्य आयोजन करेंगे जिसमें शिक्षा के गहन मुद्दों पर विचार विमर्श भी करेंगे किन्तु वर्तमान परिस्थितियों के चलते ऐसा हो पाना संभव नहीं है।
कोविड महामारी के इस दौर में लगता है कि जैसे सब कुछ थम सा गया है। विकास और प्रगति के पथ पर भाग रही दुनिया में यह एक नया दौर है जहां एक तरफ अनजाना सा भय लगातार घेरे हुए है वहीं कई तरह के सवाल भी हैं। हालांकि कोविड महामारी के लिये किसी प्रकार की सामाजिक और आर्थिक दीवार प्रभावी नहीं है लेकिन सदा की तरह और किसी और आपदा की तरह इसका अन्तिम प्रभाव उन्हीं पर पड़ने की सम्भावना है जो कि सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।
September, 2020